गुजरात के मोरबी जिले में एक छोटा सा कस्बा है,मोरबीजिलेकीटंकाराविधानसभासीटपरजानिएक्याहैचुनावीसमीकरण टंकारा.यह राजकोट से 40 किमी और मोरबी से 20 किमी की दूरी पर स्थित है. टंकारा आर्य समाज के लोगों के लिए एक पवित्र शहर माना जाता है, क्योंकि टंकारा आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्मस्थान है. इस सीट में टंकारा तालुका, मोरबी तालुका के ग्रामीण क्षेत्र, पड़घरी तालुका, लोधिका तालुका, ध्रोल तालुका आदि शामिल हैं. टंकारा कपास उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. टंकारा और उसके आसपास 25 कपास मिलें स्थित हैं. कपास के तेल खाने के कारण टंकारा व्यापार का एक प्रमुख केंद्र बन गया. राजनीति के लिहाज से टंकारा विधानसभा विधानसभा का अलग महत्व है.टंकारा-पधारी विधानसभा में पाटीदार समुदाय का दबदबा है और इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि पाटीदार वोट पाने वाली पार्टी स्पष्ट रूप से जीतेगी. इस विधानसभा क्षेत्र में 108930 पाटीदार, 10,988 क्षत्रिय, 3532 दलवाड़ी, 14606 मालधारी, 2402 ब्राह्मण, 4799 मुस्लिम, 4376 अहीर, 1917 प्रजापति, 1007 सुथार, 1045 लोहार/दर्जी, 465 जैन, 950 सोनी/वालंद, 1361 राजपूत, 300 आदिवासी, 4095 अन्य ओबीसी मिलकर कुल 2.10 लाख मतदाता हैं.सत्तारूढ़ दल बीजेपी का पारंपरिक गढ़ माने-जाने वाले मोरबी जिले में पिछली बार इस विधानसभा में बीजेपी की स्थिति बेहतर नहीं थी. इस सीट से कांग्रेस जीती थी. पिछली बार बीजेपी को पाटीदार आंदोलन का खामियाजा उठाना पड़ा था.पिछले चुनाव में कांग्रेस के ललित कगाथारा ने बीजेपी के राघवजी गडारा 29770 वोटों के अंतर से हटाया था. ललित कगाथारा को 94090 तो राघवजी गडारा को 64320 वोट मिले थे. हालांकि इस बार हार्दिक पटेल बीजेपी में शामिल हो गए हैं और पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है. हालांकि हार्दिक के इस कदम की कुछ पाटीदार आलोचना भी कर रहे हैं. टंकारा सीट जहां पाटीदारों का दबदबा है, वहां बीजेपी को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.टंकारा में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. टंकारा के आसपास के गांवों में किसानों को सिंचाई का पानी नहीं मिलता है. स्थानीय लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक पीने का पानी भी नहीं मिलता. टंकारा की जनता वर्षों से बस स्टैंड के निर्माण की मांग कर रही है, जो अभी तक पूरा नहीं हुई है.इस सीट पर वर्षों तक बीजेपी का कब्जा रहा, लेकिन वे स्थानीय लोगों की मांगों को पूरा नहीं कर सके. स्थानीय लोगों ने भी कांग्रेस को मौका दिया, लेकिन अब उन्हें लगता है कि यह उनकी सबसे बड़ी भूल थी. महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जन्मस्थली होने के बावजूद टंकारा राज्य सरकार की उपेक्षा का शिकार है.